🍀कविता
खुद ही खुद
की पहचान लिखूँगी ।
कठिन
रास्तों पें चलकर नयी
दास्ताँ लिखूँगी,
अकेली चलुँगी मगर कारवा लिखूँगी,
पैर जमीन पर होंगे लेकिन
सपनों में
आसमाँ लिखूँगी,
खुद ही
खुद की
पहचान लिखूँगी।
ना सपनों
की तस्वीर
बदलूँगी,
ना
चलने का
तेवर बदलूँगी,
घेरे चाहे
प्रलय की
घनघोर घटाएँ,
रास्तों से
ही मंजिल
का पता पूछूँगी,
अपनी
राह खुद बनाऊँगी,
खुद
ही खुद
की पहचान लिखूँगी।
बुरे
वक्त का
चेहरा बेनकाब
करूँगी ।
अच्छे
वक्त का खुद आइना
बन जाऊँगी,
भाग्य की
रेखाओं को
कर्म से
बनाऊँगी,
किस्मत
का सितारा खुद की
बन जाऊँगी,
खुद ही
खुद की
पहचान लिखूँगी ।
No comments:
Post a Comment